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ग़ज़ल
बदल के दुनिया ने भेस सदहा इसे डराया उसे लुभाया
कभी ज़न-ए-पीर-ज़ाल बन कर कभी बुत-ए-शोख़-ओ-शंग हो कर
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
सुबू पर जाम पर शीशे पे पैमाने पे क्या गुज़री
न जाने मैं ने तौबा की तो मय-ख़ाने पे क्या गुज़री