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ग़ज़ल
बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
बमों की बरसात हो रही है पुराने जाँबाज़ सो रहे हैं
ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिस की ताक़त नई नई है
शबीना अदीब
ग़ज़ल
हम ने भी सो कर देखा है नए पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है