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ग़ज़ल
सीना-ए-पुर-सोज़ यकसू चश्म-ए-गिर्यां यक तरफ़
दिल बचे क्या यक तरफ़ आतिश है तूफ़ाँ यक तरफ़
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
मुझे आज़ाद कर दो ना सभी पुर-सोज़ नालों से
मिरी ऐ ख़म-ज़दा क़िस्मत दुखों की सख़्त चालों से
काशिफ़ लाशारी
ग़ज़ल
पुर-सोज़ तरन्नुम में क्या शम्अ' ग़ज़ल-ख़्वाँ है
लौ झूमती जाती है परवाना भी रक़्साँ है
मानी नागपुरी
ग़ज़ल
ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़
अंदेशा-ए-दाना को करता है जुनूँ-आमेज़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
पुर-सोज़ जिगर के नाले भी दिल-सोज़ निकलते रहते हैं
हाँ शम्अ' भी जलती रहती है परवाने भी जलते रहते हैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
पुर-सोज़ जिगर के नाले भी दिल-सोज़ निकलते रहते हैं
हाँ शम्अ भी जलती रहती है परवाने भी जलते रहते हैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
सीना के तबक़ में है कबाब-ए-दिल-ए-पुर-सोज़
जिस दिन से ग़म-ए-हिज्र है मेहमान हमारा
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जल उट्ठे शम्अ के मानिंद क़िस्सा-ख़्वाँ की ज़बाँ
हमारा क़िस्सा-ए-पुर-सोज़ लहज़ा भर तो कहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
क्या तिरे जज़्बात के शो'ले भड़क सकते नहीं
क्या तिरा वो गुलख़न-ए-पुर-सोज़ अब गुल-पोश है
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
ग़ज़ल
तुम्हारी नग़्मा-संजी की दुकाँ पर जो नहीं मिलता
वही इक नग़्मा-ए-पुर-सोज़ मैं सब को सुनाता हूँ
ज़ुल्फ़िकार नक़वी
ग़ज़ल
रग-ओ-पै में तो समा फ़ितरत-ए-पुर-सोज़ तो देख
मैं फ़क़त ख़ाक नहीं नार भी हूँ नूर भी हूँ