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ग़ज़ल
चल आ कि दहर से किज़्ब-ओ-रिया कशीद करें
किसी के जुर्म से अपनी सज़ा कशीद करें
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
भीड़ दुनिया में है अब किज़्ब-ओ-रिया वालों की
आज-कल मिलते नहीं साहिब-ए-ईमान बहुत
ज़ाकिर हुसैन हुसैनी ज़ाकिर
ग़ज़ल
शे'र पैग़म्बरों की तरह से उतरते हैं अब भी मगर
मेरे किज़्ब-ओ-रिया दस्त-ए-तख़्लीक़ से मो'जिज़ा ले गए
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
'इंशा' करूँ जो पैरवी-ए-शैख़-ओ-बरहमन
मैं भी उन्हों की तरह से जूँ गुमरहाँ रहूँ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दोस्तो इज्माल की तफ़्सील का मौक़ा' नहीं
मैं ये कहता हूँ कि इख़्लास-ओ-रिया में फ़र्क़ है