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ग़ज़ल
मिरी बात सुन मिरे हम-नफ़स मिरे साथ अब तू वफ़ा न कर
मैं चराग़ हूँ जो बुझा हुआ मुझे रौशनी की दुआ न कर
प्रभात कुमार सरवर लखनवी
ग़ज़ल
जाने अपने साए से क्यों आज मुझे डर लगता है
जला हुआ इस शहर का हर घर अपना ही घर लगता है
आशा प्रभात
ग़ज़ल
कुछ तो मैं ही पागल था और कुछ था उस का पागल-पन
सोचो मैं ने झेला होगा कितना कितना पागल पन