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ग़ज़ल
रूप को धोका समझो नज़र का या फिर माया-जाल कहो
प्रीत को दिल का रोग समझ लो या जी का जंजाल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
रुत बीत चुकी है बरखा की और प्रीत के मारे रहते हैं
रोते हैं रोने वालों की आँखों में सावन रहता है
क़य्यूम नज़र
ग़ज़ल
हम आवारा गाँव गाँव बस्ती बस्ती फिरने वाले
हम से प्रीत बढ़ा कर कोई मुफ़्त में क्यूँ ग़म को अपना ले
हबीब जालिब
ग़ज़ल
भूले से जाने-अनजाने वार न करना तुम उन पर
जिन जिन के कंधों पर है ये प्रीत की डोली बाबू-जी
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
जिस बादल ने सुख बरसाया जिस की छाँव में प्रीत मिली
आँखें खोल के देखा तो वो सब मौसम लम्हाती थे
फ़रहत ज़ाहिद
ग़ज़ल
प्यास की ज़द में मोहब्बत का शजर या'नी मैं
जिस पे बरसा न कभी प्रीत का जल या'नी तू
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
तिरा रूप रूह के रू-ब-रू तिरी प्रीत प्रान में मू-ब-मू
तू कमाल-ए-हुस्न-ए-कलाम है तू मिसाल माह-ए-तमाम है