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ग़ज़ल
न जाने ज़ख़्म-ए-दिल की आज गहराई कहाँ पहुँची
फटा जाता है सीना वो ख़ुशी महसूस होती है
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
हसीनान-ए-चमन पर ख़ात्मा है जामा-ज़ेबी का
फटा पड़ता है जोबन जो ये पैराहन बनाते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
यूँ तो हमारा दामन बस एक फटा कपड़ा है मगर
ढूँढो तो पाओगे यहाँ सौ सौ दिल हर तार के बीच