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ग़ज़ल
फ़र्श-ए-राहत पर मुझे जिस वक़्त याद आता है यार
मुर्ग़-ए-दिल ऐसा फड़कता है कि उड़ जाती है नींद
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
मिरी अँखियाँ फड़कती हैं यक़ीं है दिल मनीं याराँ
कि नामे कूँ पियारे के कबूतर ले शिताब आवे
अब्दुल वहाब यकरू
ग़ज़ल
फड़कता आज भी हम को न परसों की तरह रखिए
ख़ुदा के वास्ते कुछ याद वो अगली क़सम कीजे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मुझे दीवाना कर देती है अपनी मौत की शोख़ी
कोई मुझ में रग-ए-इज़हार की सूरत फड़कता है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
कभी बेचैन रहता है फड़कता है कभी बर में
बताऊँ क्या तुम्हें मैं कैसी हालत है मिरे दिल की
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
वो मुझ पे फेंकता पानी की कुल्लियाँ भर भर
मैं उस के छींटों से तो पैरहन भिगोता था