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ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्ती में भी जीने की अदा ले जाएँगे
ये लुटेरे मेरे घर से और क्या ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
हमारी फ़ाक़ा-मस्ती आसमाँ के पेट भरती है
हम अपने पाँव के नीचे ख़ज़ाना छोड़ देते हैं
खुर्शीद अकबर
ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्ती से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती 'अख़्तर'
वर्ना कश्कोल में हम नान-ए-जवीं रखते हैं
तनवीर अख़्तर
ग़ज़ल
मस्त उमंगों के झोंके और फ़ाक़ा मस्ती का आलम
हसरत की तेज़ हवाएँ भी उम्मीद की आतिश-बारी भी
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
गर यूँ ही ग़ालिब रहा हम पर सुख़न का क़र्ज़ ये
''रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन''
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्ती में भी क़ाएम है मिरी कज-कुलही
और क्या चाहती है अज़्मत-ए-रफ़्ता मुझ से
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
यूँ गुज़ारी हम ने तो अपनी दो-रोज़ा ज़िंदगी
मय-परस्ती एक दिन की फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्ती में भी जीते हैं ब-आग़ाज़-ए-जुनूँ
ज़िंदगी हम तिरा पिंदार सँभाले हुए हैं