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ग़ज़ल
है अबस दवाओं का सोचना न तू फ़िक्रमंद तबीब हो
तू इलाज उस का करेगा क्या जो मरीज़-ए-इश्क़-ए-हबीब हो
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
दिल में कोई चीज़ चमकती बुझती रहती है जो 'ज़फ़र'
फ़िक्रमंद भी रहता हूँ मैं उसी धात के बारे में
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
द्वारका दास शोला
ग़ज़ल
दुश्मनों की ज़हर-अफ़्शानी से था मैं फ़िक्रमंद
लब पे उन का नाम क्या आया मैं दरिया हो गया
रहबर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
ख़िरद-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है