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ग़ज़ल
‘इश्क़-ओ-मोहब्बत के अफ़्साने कल भी थे और आज भी हैं
शम’-ए-जवानी के परवाने कल भी थे और आज भी हैं
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
कुछ उस का फ़ितरत-ए-आज़ाद पर क़ाबू नहीं चलता
ये दुनिया तो हर इक के पाँव की ज़ंजीर बनती है
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
किनारों से गुज़र जाना ही तूफ़ानों की फ़ितरत है
जहाँ दुनिया ठहर जाए क़दम मेरा वहाँ क्यूँ हो
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
जहाँ का ज़र्रा ज़र्रा यूँ तो ज़ेर-ए-हुक्म-ए-फ़ितरत है
मगर ये हुस्न की दुनिया जुदा मालूम होती है
मुनीर भोपाली
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
अंधेरा बाँटना फ़ितरत है दुनिया वालों की
उजाला दे नहीं सकते हैं दुश्मनी के चराग़