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ग़ज़ल
'वाहिद' ना कोई देख ले कमरे में मेरे साथ
जा भाग ले तू फाँद के दीवार अब पिलीज़
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
काग़ज़ के दो फूल खिले हैं ख़ुशबू फैली कमरे में
'नाज़' बहारों की ये रुत भी फाँद के आई खिड़की से
तबस्सुम नाज़
ग़ज़ल
ज़ालिम मिरे जिगर कूँ करे क्यूँ न फाँक फाँक
सीखा है वो निगह का पटा और अदा का बाँक
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
किस नज़र-नाज़ ने उस बाज़ को बख़्शी पर्वाज़
सैंकड़ों मुर्ग़ हवा फाँद के पर बैठ गए
मीर शम्सुद्दीन फ़क़ीर
ग़ज़ल
अब तुझ से किस मुँह से कह दें सात समुंदर पार न जा
बीच की इक दीवार भी हम तो फाँद न पाए ढा न सके