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ग़ज़ल
अन-पढ़ आँधी घुस पड़ती है तोड़ के फाटक महलों के
''अंदर आना मनअ है'' लिख कर लटकाने से हासिल क्या
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
तवाफ़ करती हवा का रोना मताफ़ में ग़ुल मचा रहा था
हरम के फाटक से बैन करती कोई सवारी निकल रही थी
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
जल के उस ने जान दी ये नाले कर के रह गई
इश्क़-ए-बुलबुल पर भी फ़ाइक़ इश्क़-ए-परवाना हुआ
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
बैठे हैं भीगी ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए
काफ़िर अदा-ए-हुस्न को उर्यां किए हुए
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
'फ़ाइक़' गुदाज़-ए-दिल है मोहब्बत में अस्ल शय
ये सैल-ए-अश्क-ए-ख़ाम ये दामान-ए-तर ग़लत
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
ख़ुदी से काम ले तक़दीर शायद काम आ जाए
हुजूम-ए-ग़म में 'फ़ाइक़' शोरिश-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ कब तक
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
मुख-फाट मुँह पे खाएँगे तलवार हो सो हो
दबने के भी तो उस से नहीं यार हो सो हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ज़ालिम मिरे जिगर कूँ करे क्यूँ न फाँक फाँक
सीखा है वो निगह का पटा और अदा का बाँक
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
निगाह-ए-मस्त का कैफ़-ए-ख़ुमार क्या कहिए
बहार गोया है अंदर बहार क्या कहिए