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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अगर ऐ नसीम-ए-सहर तिरा हो गुज़र दयार-ए-हिजाज़ में
मिरी चश्म-ए-तर का सलाम कहना हुज़ूर-ए-बंदा-नवाज़ में
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अगर ऐ नसीम-ए-सहर तिरा हो गुज़र दयार-ए-हिजाज़ में
मिरी चश्म-ए-तर का सलाम कहना हुज़ूर-ए-बंदा-नवाज़ में