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ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
कोई फ़रहाद जैसे बे-ज़बाँ को क़त्ल करता है
'यक़ीं' हम वाँ अगर होते तो इक-दो बचन करते
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम
ग़ज़ल
जब मिली उन से नज़र मिटने का सामाँ हो गया
ऐ क़ज़ा ख़ुश हो तिरा अब काम आसाँ हो गया