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ग़ज़ल
आज क्यूँ चुप चुप हो 'बाक़र' तुम कभी मशहूर थे
दोस्तों यारों में अपनी ख़ुश-बयानी के लिए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
मैं अबू-बक्र-ओ-अली वाला हूँ 'यूनुस-तहसीन'
मुझ को मुल्ला के मसालिक से मिलाने का नहीं
यूनुस तहसीन
ग़ज़ल
बाक़र मेहदी
ग़ज़ल
'बाक़र' मुझे कुछ दाद-ए-सुख़न की नहीं पर्वा
मैं शहर-ए-ख़मोशाँ में हूँ और नग़्मा-सरा हूँ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
उलझे उलझे से कुछ फ़िक़रे कुछ बे-रब्ती लफ़्ज़ों की
खुल कर बात कहाँ करते हैं 'बाक़र' बात बनाते हैं