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ग़ज़ल
जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
इधर है इस बात पर ख़मोशी उधर है पहली से बे-ज़बानी
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
वाँ है ये बद-गुमानी जावे हिजाब क्यूँकर
दो दिन के वास्ते हो कोई ख़राब क्यूँकर
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ज़न काम लीजे बद-गुमानी फिर सही
बे-तकल्लुफ़ और कीजे मेहरबानी फिर सही
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया
ख़ुद भी तन्हा हो गए मुझ को भी तन्हा कर दिया
नज़ीर बनारसी
ग़ज़ल
ज़रा सी बद-गुमानी दिल में नफ़रत डाल देती है
विरासत भाई-भाई में अदावत डाल देती है
मोहम्मद नसीम नवाज़
ग़ज़ल
रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप
जो मेरे हाथ से पीते नहीं हैं पानी आप
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बद-गुमानी का ये आलम हर जगह पलने लगा है
भीड़ का तन्हा सफ़र अब रूह को खलने लगा है