aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बद-हज़मी"
वो पहले मुस्कुराए फिर लिया पहलू बदलहमीं नादान थे बस मुस्कुराते रह गए
लबों पे मोहर-ए-ख़मोशी लगाई जाती हैऔर इस के ब'अद हमीं से सवाल होता है
रंग-ए-आलम बदल रहा है 'हज़ीं'नहीं मा’लूम क्या से क्या हो जाएँ
बाज़ ख़त पुर-असर भी होते हैंनामा-बर चारा-गर भी होते हैं
एक हमी ना-वाक़िफ़ ठहरे रूप-नगर की गलियों सेभेस बदल कर मिलने वाले सब जाने-पहचाने लोग
ज़ुल्म देखो क़स्र-ए-इशरत हम बनाएँऔर हमीं पर बंद दरवाज़ा रहे
जिस्म से सारी रस्म करते हैंरूह से कुफ़्र से गुज़रते हैं
यूँ चक्खो तो फीका पानीप्यास लगे तो मीठा पानी
न ख़त्म होगी कभी अब ये बद-हवासी क्यारहेगी रोज़ ये धरती लहू की प्यासी क्या
तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हालतुम्हारे क़दमों की आँधी में हो गए पामाल
नासूत जो मस्कन है तो लाहूत घर अपनाख़ल्वत में हमीं बर-सर-ए-बाज़ार हमीं हैं
बे-तही यही होगी ये जहाँ कहीं होंगेसत्ह काटने वाले सतह-आफ़रीं होंगे
जों सब्ज़ा रहे उगते ही पैरों के तले हमबरसात के मौसम में भी फूले न फले हम
तुम्हें रो कर बताना चाहते हैंकि हम भी मुस्कुराना चाहते हैं
ज़माना मेरी तबाही पे जो उदास हुआमैं अपने आप से ऐ दोस्त रू-शनास हुआ
गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करतेइलाज-ए-दर्द तिरे दर्दमंद क्या करते
दिल-ए-बद-गुमाँ के तवहहुमात अजीब हैंमिरे नाम के ये हुरूफ़ सात अजीब हैं
समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझेदिखा रहा है ये आईना मेरी ख़ामी मुझे
बदन की आँच से चेहरा निखर गया कैसाये मेरी रूह में शो'ला उतर गया कैसा
इश्क़ इतना कमाल रखता हैहुस्न को ग़म-शनास करता है
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