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ग़ज़ल
बनावट कैफ़-ए-मय से खुल गई उस शोख़ की 'आतिश'
लगा कर मुँह से पैमाने को वो पैमाँ-शिकन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जो चेहरे की बनावट से यूँ ज़ुल्फ़ों को हटाती हो
उधर का पूछो मत हम से इधर बिजली गिराती हो
मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी
ग़ज़ल
शब-ए-ख़ल्वत ये कहना बार बार उस का बनावट से
हमें छेड़े तो ग़ारत हो हमें देखे तो अंधा हो
नूह नारवी
ग़ज़ल
लगावट उस की नज़रों में बनावट उस की बातों में
सहारा मिट नहीं सकता भरोसा हो नहीं सकता