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ग़ज़ल
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने
सर झुकाने से कुछ नहीं होता सर उठाओ तो कोई बात बने
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
सहर तक सब का है अंजाम जल कर ख़ाक हो जाना
बने महफ़िल में कोई शम्अ या परवाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हाथ मिरे पतवार बने हैं और लहरें कश्ती मेरी
ज़ोर हवा का क़ाएम है दरिया की रवानी बाक़ी है
कुमार पाशी
ग़ज़ल
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
ऐसा न हो कि तुम भी मुदावा न कर सको