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ग़ज़ल
ये बयान-ए-हाल ये गुफ़्तुगू है मिरा निचोड़ा हुआ लहू
अभी सुन लो मुझ से कि फिर कभू न सुनोगे ऐसी कहानियाँ
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
है बयान-ए-हाल-ए-गुलशन ये जले जले नशेमन
ये घुटी-घुटी फ़ज़ाएँ ये गुलों की आह-ओ-ज़ारी
सरफ़राज़ बज़्मी
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
उन से कहिए भी तो कहिए हाल-ए-दिल क्या ऐ 'कँवल'
जो हमारी हर हक़ीक़त को इक अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
मिरा माज़ी नज़र आया मुझे हाल-ए-हसीं हो कर
जो उन के साथ देखे थे वो मंज़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
पुर्सान-ए-हाल कब हुई वो चश्म-ए-बे-नियाज़
जब भी गिरे हैं ख़ुद ही सँभलते रहे हैं हम