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ग़ज़ल
मिरे साग़र में मय है और तिरे हाथों में बरबत है
वतन की सर-ज़मीं में भूक से कोहराम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
डरता हूँ 'अदम' फिर आज कहीं शो'ला न उठे बिजली न गिरे
बरबत की तबीअ'त उलझी है नग़्मात की निय्यत ठीक नहीं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
बर्बत-ए-माह पे मिज़राब-ए-फ़ुग़ाँ रख दी थी
मैं ने इक नग़्मा सुनाया था तुम्हें याद नहीं
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
न छेड़ ऐ हम-नशीं अब ज़ीस्त के मायूस नग़्मों को
कि अब बरबत के तारों को बड़ी तकलीफ़ होती है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
नींद में है अभी कली फूल अभी खिला नहीं
बरबत-ए-इश्क़ पर मगर नग़्मा-ए-दिल छिड़ा नहीं
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
बात तो जब है शोले निकलें बरबत-ए-दिल के तारों से
शोर नहीं नग़्मे पैदा हों तेग़ों की झंकारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
सोचता हूँ फिर उठा लूँ बरबत-ए-कोहना 'सलाम'
मुंतज़िर है शेर-ओ-नग़्मा का ख़ुदा मेरे लिए
सलाम मछली शहरी
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
तेशे से बजाता फिरूँ मैं बरबत-ए-कोहसार
नग़्मे जो मिरे दिल में हैं पत्थर से निकालूँ
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
मौज-ए-बरबत मौज-ए-गुल मौज-ए-सबा के साथ साथ
निकहत-ए-गेसू-ए-ख़ूबाँ बेचता फिरता हूँ मैं
शोरिश काश्मीरी
ग़ज़ल
'सलाम' आज़ाद शाएरी की तवील ओ दुश्वार राह में हम
कभी कभी बरबत-ए-तग़ज़्ज़ुल पे गुनगुना भी चाहते हैं