आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बहने"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "बहने"
ग़ज़ल
जू-ए-ख़ूँ आँखों से बहने दो कि है शाम-ए-फ़िराक़
मैं ये समझूँगा कि शमएँ दो फ़रोज़ाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कैफ़ी आज़मी
ग़ज़ल
महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो
आँखों से बहने दीजिए पानी ही क्यूँ न हो
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो