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ग़ज़ल
जू-ए-ख़ूँ आँखों से बहने दो कि है शाम-ए-फ़िराक़
मैं ये समझूँगा कि शमएँ दो फ़रोज़ाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कैफ़ी आज़मी
ग़ज़ल
महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो
आँखों से बहने दीजिए पानी ही क्यूँ न हो
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
सूरज को ज़रा कुछ ढलने दो कुछ वक़्त का दरिया बहने दो
जो धूप अभी तक सर पर है वो पाँव तलक आ जाएगी
अंजुम बाराबंकवी
ग़ज़ल
आइयो ऐ अश्क अब बहने लगा है ख़ून-ए-गर्म
भेजियो पानी कि आतिश-बार आँखें हो गईं