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ग़ज़ल
नसीब अपने यहाँ तुम से बहरा-वर न हुए
तमाम उम्र कभी मर्कज़-ए-नज़र न हुए
अब्दुसत्तार अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
हक़ीक़त में वही है बहरा-वर इश्क़-ए-हक़ीक़ी से
उरूस-ए-मुल्क से जिस को मोहब्बत हो मोहब्बत हो
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
ख़ुदारा छोड़ दे ऐ चारा-फ़रमा चश्म-ए-साक़ी पर
हज़ीं दिल को नशात-ए-ज़िंदगी से बहरा-वर करना