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ग़ज़ल
राह-ए-मंज़िल में बहर-ए-हाल तबस्सुम फ़रमा
हर क़दम दुख सही माथे पे शिकन ले के न चल
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
कटे तड़पने में ज़िंदगानी न ली किसी ने ख़बर हमारी
ये हाल पूछा कि अर्श तक भी हमारा नाला पुकार आया
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
सुनूँ तुम्हारी कि अपनी कहूँ हक़ीक़त-ए-हाल
तुम्हें है मेरी शिकायत मुझे गिला दिल का