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ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार
अपना बना के तू ने मुकम्मल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
अब भी है हम को अहल-ए-चमन बस उन्हीं से प्यार
इस दिल को बार बार दुखाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
तितलियों को रोक लो जाने न दो बाद-ए-सबा
अब 'बहार'-ए-बे-ख़िज़ाँ का है गुज़ारा रेत पर
बहारुन्निसा बहार
ग़ज़ल
'बहार' लूट लिया किस ने क़ाफ़िला दिल का
ये किस ने ज़ुल्म के हाथों में रहबरी दे दी
अब्दुल्लाह बहार
ग़ज़ल
हज़रत-ए-अय्यूब को क्या पढ़ लिया तुम ने 'बहार'
साबिरों की ज़िंदगी पर तब्सिरा करने लगे