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ग़ज़ल
उस शो'ला-रू के आरिज़-ए-रंगीं के अक्स ने
चमकाई गोश्वारा-ए-दुर्र-ए-अदन में आग
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
ग़ाज़ा ब-रू मिसी ब-लब पान ब-दहन हिना ब-कफ़
सिल्क-ए-दुर्र-ए-अदन बसर तुर्रा-ए-अम्बरीं ब-दोश
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुश नहीं आया मुझे बाग़-ए-अदन भी 'साजिद'
मार डाला है मुझे फिर मिरी हुश्यारी ने
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
क़तरों में अरक़ के है अयाँ रंग बदन का
देखा न गया आज तलक दुर्र-ए-अदन सुर्ख़
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
रुख़सार-ए-तर से ताज़ा हो बाग़-ए-अदन की याद
और उस की पहली सुब्ह की वो रसमसाहटें
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिल तो लगते ही लगे गा हूरयान-ए-अदन से
बाग़-ए-हस्ती से चला हूँ हाए परियाँ छोड़ कर