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ग़ज़ल
हमराह गुल-अंदामों के हो ख़ुर्रम-ओ-ख़ंदाँ
बाग़-ओ-चमन-ओ-गुलशन-ओ-बुसताँ में गुज़र थे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तुम को सैर-ए-बाग़-ओ-गुल-गश्त-ए-चमन का वाँ है शौक़
याँ बदन पर हैं हुजूम-ए-दाग़ से गुल-कारियाँ
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
बाग़-ओ-चमन पेश-ए-नज़र बज़्म-ए-तरब शाम-ओ-सहर
हर-सू ब-कसरत जल्वा-गर हुस्न-ए-बुतान-ए-नाज़नीं
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बाग़-ओ-चमन पेश-ए-नज़र बज़्म-ए-तरब शाम-ओ-सहर
हर सू ब-कसरत जल्वा-गर हुस्न-ए-बुतान-ए-नाज़नीं
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बहार में भी जिगर-सोज़ी-ए-बहार न थी
ये कोह ओ दश्त ओ चमन बाग़-ओ-राग़ क्या जलते?
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर बाग़-ओ-बाज़ार-ओ-मकाँ सब लहलहाते हैं
ये हरियाली मगर फूली-फली लगती नहीं मुझ को
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
दोस्तो मुझ को न दो सैर-ए-चमन की तकलीफ़
अश्क ही बस है मिरा बाग़-ओ-बहार-ए-दामन
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तमाम कार-ए-अजल है नुमूद-ए-पस्त-ओ-फ़राज़
नविश्ता-ए-सर-ए-कोहसार-ओ-बाग़-ओ-दरिया देख
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
तुम सर-ए-दश्त-ओ-चमन मुझ को कहाँ ढूँडते हो
मैं तो हर रुत में बदल देता हूँ पैकर अपने