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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
पिछली रात का सन्नाटा कहता है अब क्या आएँगे
अक़्ल ये कहती है सो जाओ दिल कहता है एक न मान
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
'क़ुदसी' तो अकेला नहीं मैदान-ए-सुख़न में
हर कूचा-ओ-बाज़ार में फ़न-कार बहुत हैं
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
दिल न माना अक़्ल ने ये बात समझाई बहुत
इश्क़ में हर गाम पे होती है रुस्वाई बहुत
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मबादा फिर असीर-ए-दाम-ए-अक़्ल-ओ-होश हो जाऊँ
जुनूँ का इस तरह अच्छा नहीं हद से गुज़र जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
इसी क़दर तो है सरमाया-ए-तजस्सुस-ए-अक़्ल
कि कुछ ज़मीं की ख़बर है कुछ आसमाँ का पता