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ग़ज़ल
कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं
अख़्तर शुमार
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया
उसे क्या ख़ाक लुत्फ़-ए-ज़िंदगी जिस से जुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मुझ से रस्तों का बिछड़ना नहीं देखा जाता
मुझ से मिलने वो किसी मोड़ पे आया न करे
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
ग़ज़ल
ज़ियादा से ज़ियादा दिल बिछा देते हैं रस्ते में
मगर जिस ने बिछड़ना हो उसे रोका नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
बिछड़ना है हमें इक दिन ये दोनों जानते थे
फ़क़त हम को जुदा होने की फ़ुर्सत अब हुई है
शारिक़ कैफ़ी
ग़ज़ल
दुनिया है ये किसी का न इस में क़ुसूर था
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था