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ग़ज़ल
प्यारों से मिल जाएँ प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
काँटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
रातें महकी, साँसें दहकी, नज़रें बहकी, रुत लहकी
सप्न सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछौना, वो पहलू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
बे-मक़्सद जीना कहते हैं हैवान के जैसा जीने को
इंसाँ के लिए तो ये जीवन यारो पुर-ख़ार बिछौना है
आकिफ़ ग़नी
ग़ज़ल
वो आया तो सारे मौसम बदले बदले लगते हैं
या काँटों की सेज बिछी थी या फूलों का बिछौना है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
और तो कुछ भी नहीं लेकिन सुकून-ए-क़ल्ब को
माँ के पहलू की तरह का इक बिछौना चाहिए