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ग़ज़ल
रसा चुग़ताई
ग़ज़ल
बयान मेरठी
ग़ज़ल
रक़ीबों को सर-ए-महफ़िल जो बाज़ू में बिठाते हैं
दिल-आज़ारी मिरी करते हैं आप अच्छा नहीं करते
मंसूर ख़ुशतर
ग़ज़ल
रउफ़ रज़ा
ग़ज़ल
क़द्र-ए-सुख़न हम क्या जानें हाँ रंग-ए-सुख़न कुछ ऐसा था
अच्छे अच्छे कहने वाले अपने पास बिठाते थे
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
ज़ाग़ को सर पे बिठाते हैं मैं जल कर हुई राख
दोज़ख़ इस रश्क से है ख़ुल्द गुलिस्ताँ मुझ को