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ग़ज़ल
सदा-ए-नाक़ूस-ए-बुत-कदा पर गिरफ़्त का मशवरा न दीजे
इबादत-ओ-बंदगी के माने' नहीं है जब बरहमन हमारा
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
सीधी है रह-ए-बुत-कदा एहसान ख़ुदा का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
दिए तेरी रहगुज़ारों के जहाँ जहाँ जले हैं
न चराग़-ए-बुत-कदा है न चराग़-ए-ख़ानक़ाही
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
हैं जब तुझी पे शैख़-ओ-बरहमन मिटे हुए
फिर फ़र्क़ क्या है बुत-कदा-ओ-ख़ानक़ाह में