आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बुर्दबार"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "बुर्दबार"
ग़ज़ल
मैं अगर न पढ़ता लिखता ये कहाँ वक़ार होता
न मुझे अदब ही आता न मैं बुर्दबार होता
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
ग़ज़ल
गरचे है दिल-कुशा बहुत हुस्न-ए-फ़रंग की बहार
ताएरक-ए-बुलंद-बाम दाना-ओ-दाम से गुज़र