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ग़ज़ल
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
उस के पैर पड़े तो जलती रेत को यक-दम बख़्त लगे
मैं ने अपनी आँखों से सहरा में बूटा देखा है