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ग़ज़ल
वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
उन्हें आँखों ने बेदर्दी से बे-घर कर दिया है
ये आँसू क़हक़हा बनने की कोशिश कर रहे थे
अब्बास क़मर
ग़ज़ल
जिसे तुम ले के बेदर्दी से पाँव में कुचलते हो
ये दिल मैं ने तो ऐ साहब बड़ी मेहनत से पाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अब न दे इल्ज़ाम बेदर्दी का मक्कारी न कर
तू ही ख़ुद को जाँच ले मुझ से अदाकारी न कर
इक़बाल अशहर कुरैशी
ग़ज़ल
आज जो इस बेदर्दी से हँसता है हमारी वहशत पर
इक दिन हम उस शहर को 'राही' रह रह कर याद आएँगे
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
तेरी फ़ुर्क़त में तसव्वुर है ये बेदर्दी का
ख़्वाब हम जानते हैं नींद के आ जाने को
वहीद इलाहाबादी
ग़ज़ल
अंग लगा कर बेदर्दी ने आग सी भर दी नस नस में
टूट गए सब लाज के घुंघरू ऐसा झूम के नाची मैं
नसरीन नक़्क़ाश
ग़ज़ल
अब ये हाल-ए-दिल है जैसे रख के काँटों पर 'नियाज़'
रेशमी चादर को बेदर्दी से खींचा जाए है
नियाज़ फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
हलाल उस ने किया ख़ून-ए-मुसलमाँ वाए बेदर्दी
तिरा दस्त-ए-हिनाई काफ़िर अब ये रंग लाया है
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
इधर पर नोच कर डाला क़फ़स में उफ़ रे बेदर्दी
उधर इक जलती चिंगारी मियान-ए-आशियाँ रख दी
साइल देहलवी
ग़ज़ल
शाहों को छुप छुप के बेदर्दी से लूटा जा रहा है
ताज-पोशी चोरों की खुल कर कराई जा रही है