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ग़ज़ल
शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया
उज़्र-ए-निगाह-ए-दोस्त ने जुर्म-ए-नज़र सिखा दिया
बासित भोपाली
ग़ज़ल
ज़ब्त के बा-वस्फ़ दिल क्यों बे-अदब होने लगा
क्यों निगाहों से अयाँ रंग-ए-तलब होने लगा