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ग़ज़ल
ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम
पर हर इक ख़ूबी में दाग़ इक ऐब का पाते हैं हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
नुसरत लखनवी
ग़ज़ल
मेरी आहें हैं दलील-ए-गिरिया-ए-बे-इंतिहा
जितनी आँधी आए बारिश हो सिवा बरसात में