आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बे-ख़तर"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "बे-ख़तर"
ग़ज़ल
क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना
बहुत मुश्किल है जान ओ दिल को नज़राने में रख देना
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
न बे-ख़तर रहो मुझ से कि दर्द-मंदों के
लबों पे नाला कोई बे-ख़तर नहीं आता
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
पाँव बढ़ा के चल दिया और मैं देखता रहा
आह शबाब-ए-बे-ख़तर हाए हँसी ख़ुशी के दिन