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ग़ज़ल
कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा
कहीं तुझ को ले न डूबे तिरी ज़िंदगी का धारा
फ़ारूक़ बाँसपारी
ग़ज़ल
बे-नियाज़-ए-सौत-ओ-महरूम-ए-बयाँ रक्खा गया
या'नी हर्फ़-ए-शौक़ को ज़ेर-ए-ज़बाँ रक्खा गया
एजाज़ अासिफ़
ग़ज़ल
तबीअ'त बे-नियाज़-ए-लज़्ज़त-ए-ग़म होती जाती है
किसी से क्या मिरी दिल-बस्तगी कम होती जाती है
राजेश कुमार औज
ग़ज़ल
तबीअत-ए-बे-नियाज़-ए-जोश-ए-वहशत हो तो सकती है
जो तुम चाहो तो बेहतर मेरी हालत हो तो सकती है
मैकश बदायुनी
ग़ज़ल
वो जो बे-नियाज़-ए-जहाँ करे मुझे उस नज़र की तलाश है
जो तुझे बना दे ग़म-आश्ना मुझे उस असर की तलाश है