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ग़ज़ल
हुआ तारी जुमूद आफ़ाक़ के रंगीं इशारों पर
हुई गर्दिश से बे-बहरा ज़मीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
शेर में 'इक़बाल' का शैदा है 'ग़ालिब' का असीर
'हामिद'-ए-बे-बहरा-गो मुंकिर नहीं है मीर का
सय्यद हामिद
ग़ज़ल
हम से बे-बहरा हुई अब जरस-ए-गुल की सदा
वर्ना वाक़िफ़ थे हर इक रंग की झंकार से हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बनाया मो'तबर इंसाँ को जिस ने सज्दा करने पर
मैं बे-बहरा रहूँ उस से ये हिम्मत है कहाँ मेरी
रहीमुल्लाह शाद
ग़ज़ल
'ग़ालिब' अपना ये अक़ीदा है ब-क़ौल-ए-'नासिख़'
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
भली लगती है ऐसी बे-बहा शय क़द्र-दानों पर
जवानी मुफ़्त में बर्बाद होती है जवानों पर
वली आलम शाहीन
ग़ज़ल
मता-ए-बे-बहा आँसू ज़मीं में बो दिया था
पलट कर जब तिरा घर मैं ने देखा रो दिया था
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी