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ग़ज़ल
ये मौसम फ़ासलों का है तो बे-शक फ़ासला रखना
मगर दिल में मोहब्बत के दरीचों को खुला रखना
अनवर पाशा
ग़ज़ल
आईने में देख के चेहरा बे-शक मैं हैरान हुआ
दिल की दुनिया लूट गया है जो दिल का मेहमान हुआ
देवमणि पांडेय
ग़ज़ल
ऐसे घर में रह रहा हूँ देख ले बे-शक कोई
जिस के दरवाज़े की क़िस्मत में नहीं दस्तक कोई
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
बे-शक बहुत कठिन है यारो ये टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी
लेकिन ज़ीस्त की मंज़िल तक जाती है दिल की ही पगडंडी