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ग़ज़ल
बैरन रीत बड़ी दुनिया की आँख से जो भी टपका मोती
पलकों ही से उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
रुत आए रुत जाए बैरन हर मौसम में बरसी हैं
तेरे ग़म ने इन आँखों को बादल कर के छोड़ दिया
ज्ञानेंद्र विक्रम
ग़ज़ल
मुझ से ज़ियादा वक़्त भला क्यों बंसी बैरन पाती है
पूछ रही है राधा प्यारी अपने श्याम सलोने से
हीरालाल यादव हीरा
ग़ज़ल
हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है
अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं
थोड़ा सा इख़्तिलाफ़ है मर्द-ए-ख़ुदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
मैं वो मुर्दा हूँ कि आँखें मिरी ज़िंदों जैसी
बैन करता हूँ कि मैं अपना ही सानी निकला