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ग़ज़ल
ज़माना हो गया तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ात हुए
'फ़राज़' अब उन से मिरी बोल-चाल थोड़ई है
सुलैमान फ़राज़ हसनपूरी
ग़ज़ल
रफ़्तार-ए-किल्क क़हर है आफ़त सरीर-ए-किल्क
मज़मूँ जो लिख रहा हूँ तिरे बोल-चाल के