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ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मोहब्बत का कारोबार चले
मज़ा तो जब है कि हर लम्हा ज़िक्र-ए-यार चले
मैकश नागपुरी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ सब ने अपने ए'तिबार चुन लिए
ख़िरद ने फूल ले लिए जुनूँ ने ख़ार चुन लिए
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़-ओ-हिम्मत है रसाई फ़िक्र-ए-इंसाँ की
हर इक आमी रुमूज़-ए-मुल्क का महरम नहीं होता
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
मिरे मिज़ाज को बख़्शा है इंकिसार अगर
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ तबीअ'त को इंकिसार मिले
अब्दुल रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराईची
ग़ज़ल
तुझे ख़िरद से है निस्बत हमें 'अज़ीज़' जुनूँ
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ नज़र के सिवा कुछ और नहीं
अज़ीज़ बदायूनी
ग़ज़ल
वाँ मुतमइन करम कि दिया है ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़
याँ इज़्तिराब-ए-शौक़ में साग़र बदल गया