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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
शम् ओ परवाना न महफ़िल में हों बाहम ज़िन्हार
शम्अ'-रू ने मुझे भेजे हैं ये परवाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
साया मेरा मुझ से मिस्ल-ए-दूद भागे है 'असद'
पास मुझ आतिश-ब-जाँ के किस से ठहरा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हो गया तिफ़्ली ही से दिल में तराज़ू तीर-ए-इश्क़
भागे हैं मकतब से हम औराक़-ए-मीज़ाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ईमा है ये कि देवेंगे नौ दिन के बा'द दिल
लिख भेजे ख़त में शे'र जो बे-दिल के चार पाँच