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ग़ज़ल
चाय में चीनी मिलाना उस घड़ी भाया बहुत
ज़ेर-ए-लब वो मुस्कुराता शुक्रिया अच्छा लगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
अक्स क्या क्या थे निगाहों में फ़िरोज़ाँ 'आली'
पर ये अंदाज़-ए-नज़र वक़्त को भाया कब था
जलील ’आली’
ग़ज़ल
इस दुनिया में जो भी भाया उस को हम ने ख़ुद सा समझा
इक अर्सा बीता है हम को ये नादानी करते करते
हेमा काण्डपाल हिया
ग़ज़ल
'वहशत' इस मिस्रा-ए-जुरअत ने मुझे मस्त किया
कुछ तो भाया है कि अब कुछ नहीं भाता है मुझे
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
लिख के काग़ज़ पे तिरा नाम क़लम तोड़ दिया
कोई भाया ही नहीं मुझ को तिरे नाम के बा'द
मोहम्मद असकरी आरिफ़
ग़ज़ल
उस की उफ़्ताद पे ख़ुर्शीद की रिफ़अत क़ुर्बां
जिस को भाया तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हो जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
इतने रंगों में क्यूँ तुम को एक रंग मन भाया है
भेद ये अपने जी का कैसे औरों को समझाओगे
तौसीफ़ तबस्सुम
ग़ज़ल
तू मिरी आँख को भाया है मिरे दिल को नहीं
तेरे अतवार तो लगते हैं ज़माने वाले