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ग़ज़ल
कितना भीड़-भड़क्का जग में कितना शोर-शराबा लेकिन
बस्ती बस्ती कूचा कूचा चप्पा चप्पा तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
ग़ज़ल
कुछ नाम लिए कुछ दर्द कहे रुख़्सत हुए ले कर मेरा सुकूँ
अफ़्साने सुनाए मुझ को नए वो आग नई भड़का भी गए
सुहैल काकोरवी
ग़ज़ल
टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा
कब तलक भटके फिरें अब हम से दीवाने ख़राब