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ग़ज़ल
रक़ीबाँ की न कुछ तक़्सीर साबित है न ख़ूबाँ की
मुझे नाहक़ सताता है ये इश्क़-ए-बद-गुमाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
'असद' ज़िंदानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़त-हा-ए-ख़ूबाँ हूँ
ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
असीर-ए-हल्क़ा-ए-गेसू-ए-ख़ूबाँ हो नहीं सकता
वो दिल तू जिस को तस्कीं दे परेशाँ हो नहीं सकता
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं
हमेशा मजलिस-ए-नुत्क़-ओ-समाअत में रहूँगा मैं
अनवर शऊर
ग़ज़ल
ख़ुमार कुरैशी
ग़ज़ल
हुआ है दाग़ बे-क़दरी से उन की मुश्त-ख़ूँ मेरा
पड़े कोएले ही कब मेहंदी में दस्त-ओ-पा-ए-ख़ूबाँ के
वली उज़लत
ग़ज़ल
ऐ ख़िज़्र-ए-वक़्त मजलिस-ए-अक़्ताब-ए-वक़्त में
ज़िक्र-ए-मोआ'मला हो न फ़िक्र-ए-मआल हो
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
शौक़-अफ़ज़ा है ये अंदाज़-ए-हिजाब-ए-ख़ूबाँ
दिल में रहते हुए आँखों से निहाँ हो जाना