आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मज़हर-ए-ख़ुदा"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "मज़हर-ए-ख़ुदा"
ग़ज़ल
मैं सरापा मज़हर-ए-इस्म-ए-ख़ुदा वल्लाह हूँ
हम-सफ़ीरो इस चमन में मुर्ग़-ए-बिस्मिल्लाह हूँ
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिम
कि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
'मज़हर' छुपा के रख दिल-ए-नाज़ुक को अपने तू
ये शीशा बेचना है किसी मीरज़ा के हाथ
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
होगा पुर-नूर सियह-ख़ाना हमारे दिल का
इस में तुम ग़ौस-ए-ख़ुदा को ज़रा आ जाने दो
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
दाग़ बन कर तो रहा दामन-ए-क़ातिल पे मगर
बू-ए-ख़ूँ बहर-ए-ख़ुदा बू-ए-वफ़ा हो जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
ये इश्क़ 'जमीला' का ऐ ख़िज़्र-ए-रह-ए-उल्फ़त
महबूब के जल्वे को असरार-ए-ख़ुदा जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
पर्दे से दिल के बात जो करता है मुझ से अब
आता है ये ख़याल कहीं ख़ुद ख़ुदा न हो
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
ख़ुदा हाफ़िज़ है अपना देखिए कैसी गुज़रती है
बड़ी मुश्किल है राह-ए-इश्क़ का दुश्वार हो जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
तुम जा रहे हो जाओ ऐ बुत मिरा ख़ुदा है
सीने को रंज-ए-फ़ुर्क़त पत्थर जिगर करूँगा